मुंबईः ना तो फिल्म के हीरो की शक्ल पर कॉमेडी का कोई अंश नज़र आता है और ना ही कहानी कुछ इस तरह की है कि इसमें हंसने हंसाने वाले कुछ सीन्स रखे जाएं मगर तमिल फिल्म “डॉक्टर (Doctor)” देखते हुए आप पूरा टाइम कन्फ्यूज़न में रहते हैं कि इस फिल्म को किस तरह की फिल्म मानी जाए? क्या ये एक एक्शन फिल्म है? क्या ये एक लव स्टोरी है? क्या ये एक जासूसी स्टोरी है? क्या ये कॉमेडी फिल्म है? आखिर डॉक्टर है क्या? बहुत खोजने पर शायद आपको जवाब मिले की बिना पूछे किये गए ओपन हार्ट ऑपरेशन की एक्शन में कॉमेडी का स्टेंट डाला गया है ताकि फिल्म को देखने लायक बनाया जा सके. इतनी लम्बी और भटकती फिल्म है की आप शायद पसंद न करें, हालाँकि इस साल थिएटर में लगने वाली ये तीसरी सबसे सफल तमिल फिल्म है.
फिल्म का नायक आर्मी में डॉक्टर है और कानून-कायदे से ज़िन्दगी चलाना चाहता है, इमोशंस की जगह प्रोफेशन को रखता है. किसी शादी में एक लड़की को नाचते खिलखिलाते देखता है और उसके घरवालों से मिलने चला जाता है. लड़की मना कर देती है लेकिन बिल्ली के भाग्य से छींका टूटता है और उसी समय उस लड़की की भतीजी किडनैप हो जाती है. अपना डॉक्टर हीरो जान की बाजी, मिलिट्री की जान पहचान, थोड़ी तेज़ बुद्धि और एक थोड़ी कमपकी स्क्रिप्ट की मदद से असली विलन तक पहुँच जाता है. उसका खत्म करता है, हीरोइन की भतीजी और दूसरी लड़कियों को भी छुड़ा लेता है. डॉक्टर का ये कारनामा उस लड़की को अंततः पसंद आ जाता है और वो दोनों शादी कर के फिल्म का अंत कर देते हैं.
फिल्म के हीरो और प्रोड्यूसर हैं शिवाकार्तिकेयन. शर्ट के गले का बटन तक बंद कर के रखते हैं क्यों कि यही तो बटन का काम है. चेहरा सीरियस बना के रखा है. आवाज़ और भी ज़्यादा सीरियस. डायलॉग डिलीवरी फ्लैट क्यों रखी है ये समझने की कोशिश न करें. तमिल फिल्मों में कई बार लॉजिक का इस्तेमाल करने से बचा जाता है. जितनी आसानी से वो अपने डॉक्टर होने का फायदा उठाता है वो अजीब लगता है क्योंकि फिल्म की शुरुआत में उसे बड़ा कायदा पसंद बताया गया है. एक किडनेपिंग ऑपरेशन करने के लिए वो पूरे परिवार को मिलिट्री की दुहाई देता है जहाँ अपने सीनियर की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं होता वहीँ वो अपने एक रिटायर्ड सीनियर (मिलिंद सोमण) की बात नहीं मानता। खैर, लॉजिक पर समय जाया न करें. फिल्म की हीरोइन प्रियंका अरुलमोहन को एक सीन को छोड़ कर सिर्फ सुन्दर दिखना था. वो दिखी भी हैं. ये उनकी पहली तमिल फिल्म है इसके पहले प्रियंका ने कुल जमा 3 तेलुगु फिल्मों में काम किया है. फिल्म के विलन के रोल में हैं हीरो जैसी पर्सनालिटी वाले अभिनेता विनय राय जो इतने खूंखार और बुद्धिमान विलन हैं कि उन्हें सब कुछ साफ़ दिखाई देता है सिवाय हीरो की चालाकी के. आश्चर्य होता है कि देश के अलग अलग हिस्सों से लड़कियों को किडनैप कर के उन्हें आगे बेचने के लिए तैयार करने वाले एक गैंग का लीडर इतना बौड़म है. लेकिन जाने दीजिये.
फिल्म में और भी कलाकार है जैसे रघु राम और राजीव लक्ष्मण (रोडीज़ वाले). निहायत ही बेहूदा रोल है. एक मेट्रो ट्रेन में अँधेरे में नाईट-विज़न गॉगल्स पहन कर हीरो और इनके बीच की लड़ाई महा-हास्यास्पद है. बिना वजह की कॉमेडी. मशहूर कॉमेडी आर्टिस्ट योगी बाबू भी हैं. वो भी कॉमेडी कर रहे हैं. हीरो के साथी बन जाते हैं और ओवर एक्टिंग करते हुए विलन से किडनैपिंग के सौदे करते नज़र आते हैं. विलन मूर्ख और अँधा दोनों बन जाता है. आर्मी में मेजर रह चुके, हिंदी टेलीविज़न और फिल्म एक्टर बिक्रमजीत कँवरपाल की संभवतः ये आखिरी फिल्म थी. कोविड की वजह से इनका देहांत हो गया था. उनका रोल भी अजीब सा ही लग रहा था, हालाँकि बहुत छोटा था. मिलिंद सोमण ने ये फिल्म क्यों की ये तो सिर्फ वो ही बता सकते हैं. फिल्म इतनी अजीब सी लिखी गयी है कि किरदारों की बुद्धि पर तरस आता है. महाली (सुनील रेड्डी) और किल्ली (शिवा अरविन्द) जैसे कलाकार बीच बीच में कॉमेडी करने का असफल प्रयास करते हैं लेकिन सिचुएशन ऐसी बनायीं जाती है कि दर्शकों को पता चलता रहे की यहाँ पर हंसना है.
फिल्म लिखी है निर्देशक नेल्सन दिलीपकुमार ने. कहानी का मूल समझें तो अच्छी कहानी नज़र आती है कि एक आर्मी का डॉक्टर अपनी मंगेतर की भतीजी को किडनैपर के चंगुल से बचाने के लिए क्या क्या जतन करता है. लेकिन निर्देशक नेल्सन और लेखक नेल्सन के बीच का फर्क फिल्म में नज़र आता है. बतौर निर्देशक नेल्सन की ये दूसरी ही फिल्म है लेकिन लॉजिक की कमी की वजह से फिल्म भी कमज़ोर हो गयी है. फिल्म के संगीतकार अनिरुद्ध रविचंदर (कोलावेरी डी) ने अच्छा संगीत दिया है. नेल्सन को फिल्मों में लाने और बनाये रखने के लिए अनिरुद्ध ही ज़िम्मेदार हैं. फिल्म के गाने अच्छे हैं. नेल्सन की पहली फिल्म का संगीत भी अनिरुद्ध ने ही दिया था. तमिल सुपरस्टार विजय की अगली फिल्म “बीस्ट” है जिसमें एक बार फिर नेल्सन (लेखक निर्देशक) और अनिरुद्ध (संगीतकार) के तौर पर मिलेंगे. वैसे इस फिल्म में एक गाना है जो भारत में टिकटॉक के बैन पर बनाया गया है और खुद शिवाकार्तिकेयन ने लिखा है.
फिल्म चाइल्ड ट्रैफिकिंग, ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसे गंभीर मुद्दे पर बनायीं गयी है. इसमें नाच गाना और बड़ा ही घिसा-पिटा हास्य, फिजिकल कॉमेडी और असमय की कॉमेडी ठूंस दी गयी है. शिवकार्तिकेयन खुद एक स्टैंडअप कॉमेडियन रह चुके हैं इसलिए शायद वो आदत जाती नहीं है लेकिन इस फिल्म के लिए जिस तरह की गंभीरता की ज़रुरत थी, वो अचानक ही कॉमेडी की वजह से ख़त्म हो गयी है. फिल्म लम्बी है. चूंकि बॉक्स ऑफिस पर सफल है इसलिए सौ गुनाह माफ़ है लेकिन फिल्म में कॉमेडी का स्टेंट डालने से भी दिमाग की नसें नहीं खुलती.
डिटेल्ड रेटिंग
| कहानी | : | |
| स्क्रिनप्ल | : | |
| डायरेक्शन | : | |
| संगीत | : |
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Tags: Entertainment, Film review, Tollywood
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